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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं

ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं हर कोई है घर में दुबका हुआ नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं चंद मास अभी इंतज़ार करो निज मन में तनिक विचार करो नये साल नया कुछ हो तो सही क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही उल्लास मंद है जन -मन का आयी है अभी बहार नहीं ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं ये धुंध कुहासा छंटने दो रातों का राज्य सिमटने दो प्रकृति का रूप निखरने दो फागुन का रंग बिखरने दो प्रकृति दुल्हन का रूप धार जब स्नेह – सुधा बरसायेगी शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि नव वर्ष मनाया जायेगा आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर जय गान सुनाया जायेगा युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध आर्यों की कीर्ति सदा -सदा नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अनमोल विरासत के धनिकों को ...
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
आज हमारा देश जहा गाॅधी जी का जन्म दिवस मना रहे है वही दुसरी ओर हमारा दुश्मन देश पाकिस्तान को चीन खुलकर समर्थन दे रहा है।अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चीन भारत का एक मात्र विरोधी देश है जो बार बार भारत धोखा देता है।उसका सबसे बङी कमाई भारतीय बाजार से होती है आइये हम लोग यह निश्चय करे कि हम लोग चीन मे बनी किसी भी वस्तु को नही खरिदेगे और अपने साथियो से भी कहेगे।हाल ही मे दीवाली आने वाला है हम मिट्टी का दिया जलाएगे और चीन मे बने कोई भी दिया,पटाखा,ईलेक्ट्रानिक लाईट नही खरिदेगे।यदि आप एसा करते है तो चीन के गाल पर करारा चाटा होगा। धन्यवाद भाईयो। ।भारत माता की जय।
Today our country is celebrating the birth day of gāĕdhī. It is the same as our enemy country is supporting Pakistan. In International Level China is an anti-India country which makes india cheating again. It is from the biggest Indian market, let us say that we will not say any object in China and will say to his friends. Recently, we have to be made of dust and made no one in China, crackers, not īlēkṭrānika light. If you do so, there will be a fitting cāṭā on China's cheek. Thank you brothers. . Bharat mata ki jai.
॥ गगन में लहरता है भगवा हमारा ॥     ॥ गगन में लहरता है भगवा हमारा ॥ गगन मे लहरता है भगवा हमारा । घिरे घोर घन दासताँ के भयंकर गवाँ बैठे सर्वस्व आपस में लडकर बुझे दीप घर-घर हुआ शून्य अंबर निराशा निशा ने जो डेरा जमाया ये जयचंद के द्रोह का दुष्ट फल है जो अब तक अंधेरा सबेरा न आया मगर घोर तम मे पराजय के गम में विजय की विभा ले अंधेरे गगन में उषा के वसन दुष्मनो के नयन में चमकता रहा पूज्य भगवा हमारा॥१॥ भगावा है पद्मिनी के जौहर की ज्वाला मिटाती अमावस लुटाती उजाला नया एक इतिहास क्या रच न डाला चिता एक जलने हजारों खडी थी पुरुष तो मिटे नारियाँ सब हवन की समिध बन ननल के पगों पर चढी थी मगर जौहरों में घिरे कोहरो में धुएँ के घनो में कि बलि के क्षणों में धधकता रहा पूज्य भगवा हमारा ॥२॥ मिटे देवाता मिट गए शुभ्र मंदिर लुटी देवियाँ लुट गए सब नगर घर स्वयं फूट की अग्नि में घर जला कर पुरस्कार हाथों में लोंहे की कडियाँ कपूतों की माता खडी आज भी है भरें अपनी आंखो में आंसू की लडियाँ मगर दासताँ के भयानक भँवर में पराजय समर में अखीरी क्षणों तक शुभाशा बंधाता कि इच्छा जगाता कि ...
गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ लगी कुछ ऐसी नज़र, बिखरा शीशे का शहर, अपनों के मेले में, मीत नहीं पाता हूँ, फिर ये विश्वासघात की कल्पना हैं – पीठ में छूरी सा चाँद, राहु गया रेखा फान्द, मुक्ति के क्षणों में, बार-बार बंध जाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ, गीत नहीं गाता हूँ लेकिन परिस्थिति बदली, मनोस्थिति बदली, कवि ने कहा की “मैं लिखूंगा!” कवि ने लिखा – गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात प्राची में, अरुणिमा की रेख देख पाता हूँ गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ इसका अंतिम हैं – टूटे हुए सपने की सुने कौन, सिसकी? अंतर को चीर व्यथा, पलकों पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा काल के कपाल पर, लिखता-मिटाता हूँ गीत नया गाता हूँ, गीत नया गाता हूँ – श्री अटल बिहारी वाजपेयी
आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है जहाँ हमारा ताज-महल है और क़ुतब-मीनारा है जहाँ हमारे मन्दिर मस्जिद सिखों का गुरुद्वारा है इस धरती पर क़दम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी आज सभी के लिये हमारा यही क़ौमी नारा है
हिमाला की बुलन्दी से, सुनो आवाज़ है आयी कहो माँओं से दें बेटे, कहो बहनों से दें भाई वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा रहेगी जब तलक दुनिया, यह अफ़साना बयाँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा हिमाला कह रहा है इस वतन के नौजवानों से खड़ा हूँ संतरी बनके मैं सरहद पे ज़मानों से भला इस वक़्त देखूँ कौन मेरा पासबाँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा चमन वालों की ग़ैरत को है सैय्यादों ने ललकारा उठो हर फूल से कह दो कि बन जाये वो अंगारा नहीं तो दोस्तों रुसवा, हमारा गुलसिताँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा रहेगी जब तलक दुनिया, यह अफ़साना बयाँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा अमर वो नौजवाँ होगा हमारे एक पड़ोसी ने, हमारे घर को लूटा है हमारे एक पड़ोसी ने, हमारे घर को लूटा है भरम इक दोस्त की बस दोस्ती का ऐसे टूटा है कि अब हर दोस्त पे दुनिया को दुश्मन का गुमाँ होगा वतन पे जो फ़िदा होगा, अमर वो नौजवाँ होगा सिपाही देते हैं आवाज़, माताओं को, बहनों को हमें हथियार ले दो, बेच डालो अपने गहनों को कि इस क़ुर्बानी पे क़ुर्बां वतन का हर जव...
आज के समाज की दशा कुकृत्यों से शोचनीय है। न जाने कितने नरपिशाच अपने स्वार्थों के कारण सामाजिक व्यवस्था को तार-तार कर रहे हैं। प्रायः सर्वत्र अकर्मण्यता, स्वार्थपरायणता, निर्धनता, कामुकता, विषयासक्ति, दुराचार, भ्रष्टाचार, बलात्कार, परधनहरण, आतंकवाद, जातिवाद, अशिक्षा, नैतिकपतन, कुटिलराजनीति इत्यादि दोष पद-पद पर देखे जा रहे हैं। अद्यतनीय शिक्षासंस्थानों से प्रतिवर्ष लाखों, करोड़ों छात्र स्वकीय शिक्षा पूर्ण कर सामाजिकक्षेत्र में आते हैं, किन्तु क्या वहाँ किंचित् मात्र भी माता पित ा में भक्ति, गुरुजनों में आदरभाव, स्वदेश में अनुरक्ति, कर्त्तव्य कार्य के प्रति अनुराग है? नहीं। परन्तु केवल अर्थासक्ति है और तद्द्वारा कामनापूर्ति तथा व्यसनों में अत्यादर। यही नहीं जिस शहरी समाज में नित्य बच्चों तक के साथ बलात्कार कर गन्दे नाले में फेंक देने की वहसी निठारी, नोयडा की और किडनी बेचने की गुड़गाँव जैसी घृणित अनैतिक आचरणों की घटनाएँ हैं। लूटपाट और डकैतियाँ हैं। बच्चों के अपहरण और फिरौतियाँ हैं। दूसरों की सम्पत्तियों पर अधिकार जमाने की कोशिशे हैं। असहिष्णुता है। आत्महत्याएँ हैं। असमानता ऐसी कि एक तरफ क...
बाधाएँ आती हैं आएँ घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढ़लना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। कुछ काँटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा।
जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता, शोणित बहा, लेकिन, गयी बच लाज सारे देश की? और तब सम्मान से जाते गिने नाम उनके, देश-मुख की लालिमा है बची जिनके लुटे सिन्दूर से; देश की इज्जत बचाने के लिए या चढा जिनने दिये निज लाल हैं। ईश जानें, देश का लज्जा विषय तत्त्व है कोई कि केवल आवरण उस हलाहल-सी कुटिल द्रोहाग्नि का जो कि जलती आ रही चिरकाल से स्वार्थ-लोलुप सभ्यता के अग्रणी नायकों के पेट में जठराग्नि-सी। विश्व-मानव के हृदय निर्द्वेष में मूल हो सकता नहीं द्रोहाग्नि का; चाहता लड़ना नहीं समुदाय है, फैलतीं लपटें विषैली व्यक्तियों की साँस से। हर युद्ध के पहले द्विधा लड़ती उबलते क्रोध से, हर युद्ध के पहले मनुज है सोचता, क्या शस्त्र ही- उपचार एक अमोघ है अन्याय का, अपकर्ष का, विष का गरलमय द्रोह का! लड़ना उसे पड़ता मगर। औ' जीतन...
हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ? हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ? हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ? यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ? दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें। पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है, हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है। घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है, जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है, समझो, उसने ही हमें यहाँ मारा है। जो सत्य जान कर भी न सत्य कहता है, या किसी लोभ के विवश मूक रहता है, उस कुटिल राजतन्त्री कदर्य को धिक् है, यह मूक सत्यहन्ता कम नहीं वधिक है। चोरों के हैं जो हितू, ठगों के बल हैं, जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं, जो छल-प्रपंच, सब को प्रश्रय देते हैं, या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं; यह पाप उन्हीं का हमको मार गया है, भारत अपने घर में ही हार गया है। है कौन यहाँ, कारण जो नहीं विपद् का ? किस पर जिम्मा है नहीं हमारे वध का ? जो चरम पाप है, हमें उसी की लत है, दैहिक बल को रहता यह देश ग़लत है। नेता निमग्न दिन-रात शान्ति-चिन्तन में, कवि-कलाकार ऊपर उड़ रहे गगन में। यज्ञाग्नि हिन्द में...
पन्द्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है। लाशों पर पग धर कर, आजादी भारत में आई। अब तक हैं खानाबदोश, गम की काली बदली छाई॥ के फुटपाथों पर, जो आंधी-पानी सहते हैं। उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं॥ के नाते उनका दुख सुनते, यदि तुम्हें लाज आती। तो सीमा के उस पार चलो, सभ्यता जहां कुचली जाती॥ इन्सान जहां बेचा जाता, ईमान खरीदा जाता है। इस्लाम सिसकियां भरता है, डालर में मुस्काता है॥ को गोली, नंगों को हथियार पिन्हाये जाते हैं। सूखे कण्ठों से, जेहादी नारे लगवाये जाते हैं॥ लाहौर, कराची, ढाका पर, मातम की है काली छाया। पख्तूनों पर, गिलगित पर है, गमगीन गुलामी का साया॥ बस इसीलिए तो कहता हूं, आजादी अभी अधूरी है। कैसे उल्लास मनाऊं मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥ दूर नहीं खण्डित भारत को, पुन: अखण्ड बनायेंगे। गिलगित से गारो पर्वत तक, आजादी पर्व मनायेंगे। उस स्वर्ण दिवस के लिए, आज से कमर कसें, बलिदान करें। जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें॥